तालिबान कौन है । Who is the Taliban
तालिबान कौन है । Who is the Taliban

तालिबान कौन है? । Who is the Taliban?

तालिबान कौन है ? Who is the Taliban ?

बात 1980 के शुरुआती दिनों की है। सोवियत यूनियन के सैनिक अफगानिस्तान पहुंचे थे। अफगान सरकार उनके संरक्षण में काम कर रही थी। कई मुजाहिदीन समूह सेना और सरकार के खिलाफ लड़ाई लड़ रहे थे। इन मुजाहिदीनों को अमेरिका और पाकिस्तान से समर्थन प्राप्त था। 1989 में, सोवियत संघ ने अपने सैनिकों को वापस बुला लिया। इसके खिलाफ लड़ने वाले लड़ाके अब आपस में ही लड़ने लगे। ऐसा ही एक लड़ाका मुल्ला मोहम्मद उमर था। उसने कई युवा पश्तूनों के साथ मिलकर तालिबान ( Taliban) की स्थापना की।

इसकी शुरुआत मुल्ला मोहम्मद उमर ने पूर्वी पाकिस्तान के कुछ मदरसों से की थी। पश्तो भाषा में मदरसों में पढ़ने वाले स्टूडेंट्स को तालिबान कहते है। ये संगठन सुन्नी इस्लाम का प्रचार करता था जिसे सऊदी अरब से फंडिंग मिलती थी। दुनिया के सिर्फ तीन देशों पाकिस्तान, सऊदी अरब और यूएई ने तालिबान सरकार को मान्यता दी थी।

1994 में तालिबान ने कंधार पर कब्जा जमाया और 1995 में हेरात पर। 1996 में राजधानी काबुल पर कब्जा किया इसी साल तालिबान ने अफगानिस्तान को इस्लामिक अमीरात घोषित कर दिया। राष्ट्रपति बुरहानुद्दीन रब्बानी को सत्ता से हटाकर मुल्ला मोहम्मद उमर को अमीर अल मोमिनीन बनाया गया। 90% अफगानिस्तान पर तालिबान का नियंत्रण हो गया था।

तालिबान संगठन और नेता (Taliban Organizations and Leaders)-

किसी भी देश की सरकार की तरह तालिबान भी काम कर रहा है। पूरे संगठन का प्रभारी एक व्यक्ति होता है। उसके बाद, तीन उप नेता हैं। उनके पास रहबरी शूरा नामक एक नेतृत्व समिति है। सभी प्रांतों के लिए अलग-अलग गवर्नर और कमांडर भी नियुक्त किया जाता है।

लीडर
मौलवी हिबतुल्ला अंखुजादा
राजनीतिक, धार्मिक और सैन्य मामलों की टॉप अथॉरिटी। 2016 में कमान संभाली। इससे पहले तालिबान के पूर्व चीफ जस्टिस थे। लीडर को अमीर अल मोमिनीन कहा जाता है।

तीन डिप्टी
मुल्ला अब्दुल गनी बरादर
राजनीतिक मामलों का मुल्ला मुहम्मद याकूब मिलिट्री ऑपरेशन का कमांडर और तालिबान का को-फाउंडर।

मुल्ला मोहम्मद याकूब
मिलिट्री ऑपरेशन का कमांडर और तालिबान का फाउंडर मुल्ला उमर का बेटा।

सिराजुद्दीन हक्कानी
राजनीतिक तालिबानी नेता जलालुद्दीन हक्कानी का बेटा और हक्कानी नेटवर्क का मुखिया।

लीडरशिप काउंसिल (रहबरी शूरा या क्वेटा शूरा)
इसमें 26 सदस्य हैं ये तालिबान की सबसे बड़ी और फैसले लेने वाली पावरफुल अथॉरिटी है। ये पाकिस्तान के क्वेटा शहर से ऑपरेट होती है इसलिए इसे क्वेटा शूरा भी कहते हैं।

कमीशन (तालिबान की कैबिनेट)
मिलिट्री, पॉलिटिकल और इकोनॉमिक समेत 16 विभाग हैं। ये तालिबान की कैबिनेट की तरह काम करती है। हर राज्य में तालिबान का एक गवर्नर और कमांडर होता है। दोनों पदों पर नियुक्ति मिलिट्री कमीशन करता है। इसके अलावा एक सीनियर जज का पद होता है जिस पर इस वक्त मुल्ला अब्दुल हकीम काबिज है।

तालिबान नियम और कानून (Taliban rules and regulations)-

1996 से 2001 तक अफगानिस्तान में तालिबान की सत्ता थी। तालिबान ने पूरे देश में शरिया कानून लागू कर दिया।

➢ लड़कियों के स्कूल जाने और महिलाओं के काम करने पर रोक लगा दी।

➢ पुरुषों के लिए नमाज पढ़ना और लंबी दाढ़ी रखना अनिवार्य कर दिया।

➢ आदेश न मानने वालों को सजा देना एक पब्लिक इवेंट बना दिया गया।

➢ हत्या के जुर्म में फांसी और चोरी करने वालों के अंग काट दिए जाते थे।

➢ अफगानिस्तान में दुनिया भर के आतंकवादियों को पनाह दी जाने लगी।

तालिबान की आमदनी (Taliban’s income)-

दुनिया की 80% अफीम का उत्पादन अकेले अफगानिस्तान में होता है। अफीम से तालिबान को करीब 3000 करोड़ रुपए आमदनी होती है।

अफीम की खेती वाले ज्यादातर हिस्से पर तालिबान का नियंत्रण है। अफीम का कारोबार करने वालों से तालिबान टैक्स वसूलता है तालिबान के इलाकों में बॉर्डर पोस्ट पर भी व्यापारियों को टैक्स देना होता है।

किसी सैन्य चौकी या शहरी इलाके पर कब्जा करके सारी संपत्ति तालिबान ले लेता है। अफगानिस्तान में अवैध खनन करने वाली कंपनियों से भी तालिबान टैक्स वसूलता है।

तालिबान और अमेरिका में जंग –

11 सितंबर 2001 को 19 आतंकियों ने अमेरिका के 4 यात्री विमानों को हाईजैक किया। इनमें से दो विमानों को वर्ल्ड ट्रेड सेंटर, 1 विमान को पेंटागन और 1 विमान अज्ञात जगह में क्रैश करा दिया गया। इस हमले में 2996 लोगों की मौत हो गई। इस हमले के पीछे अल कायदा का हाथ था। अमेरिका ओसामा बिन लादेन के खून का प्यासा हो गया। ओसामा पहले सूडान में छिपा था, उसके बाद अफगानिस्तान में पनाह ली। अमेरिका को इसकी खबर लगी तो वो अफगानिस्तान पर टूट पड़ा। उस वक्त अफगानिस्तान में तालिबान का शासन था।

7 अक्टूबर 2001 को अमेरिका के नेतृत्व में नाटो ने अफगानिस्तान पर हमला किया। महज 3 महीने में अफगानिस्तान से तालिबान का शासन खत्म कर दिया। तालिबान और अल कायदा के बड़े नेता पाकिस्तान के क्वेटा शहर भाग गए।

सितंबर 2012 में तालिबान ने काबुल में कई हमले किए जिसमें नाटो के कैंप भी शामिल थे। मई 2013 में यूएस के ड्रोन हमले में तालिबान के सबसे बड़े नेता हकीमुल्लाह मसूद की मौत हो गई।

अगस्त में तालिबान ने मुल्ला मंसूर को अपना नया नेता चुने जाने की घोषणा की। मई 2016 में एक अमेरिकी ड्रोन हमले में मुल्ला मंसूर की भी मौत हो गई। मई 2016 के बाद संगठन की कमान मौलवी हिबतुल्ला अंखुजादा को सौंप दी गई।

➢ 2001 से 2019 के बीच अमेरिका ने अफगानिस्तान पर कुल 61 लाख करोड खर्च किए।

➢ 1,11,000 से ज्यादा अफगानिस्तानी नागरिक मारे गए हैं।

➢ 2300 से ज्यादा अमेरिकी सैनिकों ने इस युद्ध में अपनी जान गंवाई।

➢ 64,100 से ज्यादा अफगानिस्तानी सैनिक और पुलिसकर्मी मारे गए हैं।

आखिर क्यों अफगानिस्तान तालिबान का सामना नहीं कर सका ?

अमेरिका और नाटो सहयोगियों ने दो दशक में अरबों डॉलर खर्च किए ताकि अफगान सुरक्षा बलों को ट्रेनिंग दी जा सके। उन्हें अत्याधुनिक हथियार दिए जा सकें। इसके बाद भी पश्चिमी देशों के समर्थन से बनी सरकार ने बड़े स्तर पर भ्रष्टाचार किया। जब अमेरिका ने सैनिकों को वापस बुलाने के प्लान पर अमल शुरू किया तो अफगानिस्तानी सेना का हौसला पस्त हो गया। तभी तो 70-80 हजार लड़ाकों वाला तालिबान 3 लाख सैनिकों की अफगानिस्तान सेना पर भारी पड़ा। तालिबान के आगे बढ़ते ही अफगान सैनिक समर्पण करते चले गए। काबुल जैसे बड़े शहर तो बिना संघर्ष के ही तालिबान ने हथिया लिए।

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