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राष्ट्रीय डेयरी योजना क्या है ?
राष्ट्रीय डेयरी योजना के प्रथम चरण का प्रारम्भ गुजरात के आनंद में किया गया था। केन्द्रीय कृषि मंत्री शरद पवार द्वारा 19 अप्रैल, 2012 को महत्वाकांक्षी राष्ट्रीय डेयरी योजना की शुरुआत की गई थी।
राष्ट्रीय डेयरी योजना की लागत एवं अवधि –
राष्ट्रीय डेयरी योजना की कुल लागत 17,300 करोड़ रुपए है तथा इसकी अवधि 15 वर्ष है। राष्ट्रीय डेयरी योजना का प्रथम चरण छः वर्षीय है जिसकी कुल लागत 2,242 करोड़ रुपए है। इसे 14 वृहद दुग्ध उत्पादक राज्यों यथा उत्तरप्रदेश, पंजाब, हरियाणा, गुजरात, राजस्थान, मध्यप्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल, महाराष्ट्र, कर्नाटक, ओडिशा, तमिलनाडु, आंध्रप्रदेश तथा केरल में जो कि देश के लगभग 90 प्रतिशत दुग्ध का उत्पादन करते हैं, लागू किया गया है।
इस योजना के प्रथम चरण को विश्व बैंक द्वारा 352 मिलियन डॉलर की वित्तीय सहायता प्रदान की गई है। योजना का क्रियान्वयन ‘राष्ट्रीय डेयरी विकास बोर्ड’ द्वारा किया जाएगा जिसमें राज्य सरकार, राज्य पशुधन बोर्ड, सहकारी डेयरी संघ, आईसीएआर संस्थान और पशु चिकित्सा / डेयरी संस्थान / विश्वविद्यालय सम्मिलित हैं।
राष्ट्रीय डेयरी योजना का उद्देश्य –
इस योजना का उद्देश्य दुग्ध प्रदान करने वाले पशुओं की उत्पादकता में वृद्धि के साथ – साथ भारत के लगभग 70 लाख लघु एवं ग्रामीण दुग्ध उत्पादनकर्ताओं की पहुँच को प्रबंधित दुग्ध प्रसंस्करण ईकाइयों तक सुनिश्चित करना है।
इस योजना के अंतर्गत पोषक तत्वों और ब्रीडिंग से संबंधित क्रियाओं हेतु 100 प्रतिशत अनुदान उपलब्ध कराया जाएगा।
राष्ट्रीय डेयरी कार्ययोजना हेतु 15 वर्षीय सीमा पर विचार किया गया है जिसमें 3 से 5 साल और अधिक उत्पादकता वाले पशुओं के उत्पादन तथा दुग्ध प्रणाली के विकास एवं विस्तार हेतु आवश्यक है।
योजना के प्रथम चरण का प्रारंभ वर्ष 2012-13 से होकर छह वर्ष तक चलेगा जिसके अंतर्गत ऐसे बहुत से कार्यों का आरंभ किया जाएगा जिससे वैज्ञानिक ब्रीडिंग एवं पोषक तत्वों के विकास में वृद्धि होगी फलस्वरूप उत्पादकता में वृद्धि होगी। योजना के प्रथम चरण में ‘ब्रीडिंग’ और ‘पोषक तत्व’ पर महत्वपूर्ण रूप से ध्यान केंद्रित किया गया है।
राष्ट्रीय डेयरी योजना से लाभ –
1970 के दशक में हुई श्वेत क्रांति (ऑपरेशन फ्लड) के लाभों एवं डेयरी उत्पाद से संबंधित उत्पादन में हुई आश्चर्यजनक वृद्धि को देखते हुए ‘राष्ट्रीय डेयरी योजना’ की शुरूआत को द्वितीय श्वेत क्रांति की संज्ञा दी जा रही है। वास्तव में वर्ष 1990 एवं वर्ष 2000 के दशक में डेयरी उत्पाद से संबंधित उत्पादन में गिरावट देखी गई जो कि क्रमशः 4.3 प्रतिशत और 3.8 प्रतिशत रही। सरकार द्वारा दुग्ध उत्पादों की माँग में वृद्धि की संभाव्यता को देखते हुए ही इस योजना के माध्यम से गिरावट को दूर करने का प्रयास किया गया है।
भारत में दुग्ध की उभरती हुई माँग की पूर्ति हेतु अगले 15 वर्षों तक दुग्ध उत्पादन में 6 मिलिटन टन प्रति वार्षिक की वृद्धि दर को प्राप्त करना होगा। यदि उत्पादन में आवश्यकतानुसार वृद्धि नहीं की गई तो माँग एवं पूर्ति के मध्य असंतुलन की स्थिति उत्पन्न हो जाएगी जिसके फलस्वरूप ऐसा संभव है कि भविष्य में दुग्ध का आयात करना पड़े। इन्हीं सब आकांक्षाओं पर विचार करने के पश्चात सरकार द्वारा ‘राष्ट्रीय डेयरी योजना’ की शुरुआत की गई है जिससे समय रहते दुग्ध उत्पादन में वृद्धि कर भविष्य में होने वाली समस्याओं से बचा जा सके।
भारत में दुग्ध उत्पादन –
विदित है कि वर्तमान समय में डेयरी सेक्टर भारत के जीडीपी में 6 प्रतिशत का तथा कृषि की जीडीपी में 20 प्रतिशत का योगदान करता है। वर्तमान समय में भारत में वार्षिक रूप से लगभग 121.8 मिलियन टन दुग्ध का उत्पादन होता है।
ऐसा अनुमान है कि वर्ष 2021-2022 में दुग्ध की माँग लगभग 175 मिलियन टन तक बढ़ जाएगी। इस मांग की पूर्ति हेतु भारत को अपने दुग्ध प्रदान करने वाले पशुओं की उत्पादकता में दैनिक रूप से औसतन 3.4 किग्रा. से लेकर 6.3 किग्रा. तक की वृद्धि करनी होगी जो कि एक अंतरराष्ट्रीय मानक है। दुग्ध उत्पादन में बढ़ोतरी की दर 2022 तक बढ़कर नौ प्रतिशत होने की उम्मीद है।
वर्तमान में भारत दुग्ध उत्पादन के क्षेत्र में विश्व में प्रथम स्थान पर है। भारत, विश्व के कुल दुग्ध उत्पादन में लगभग 17 प्रतिशत का उत्पादन करता है तथा भारत में दुग्ध उत्पादन की प्रतिवार्षिक वृद्धि दर विश्व के 1 प्रतिशत की अपेक्षा 4 प्रतिशत है।