Major caves of Madhya Pradesh
Major caves of Madhya Pradesh

मध्यप्रदेश की प्रमुख गुफाएँ । Major caves of Madhya Pradesh

यहाँ पर मध्यप्रदेश की प्रमुख गुफाएँ (Major caves of Madhya Pradesh) का विस्तृत वर्णन दिया गया है। इस टॉपिक पर प्रतियोगी परीक्षाओं में कई बार प्रश्न पूछे जा चुके है यदि आप विभिन्न प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रहे है तो आपको मध्यप्रदेश की प्रमुख गुफाओ (Major caves of Madhya Pradesh) के बारे में आवश्यक रूप से पढ़ लेना चाहिए।

Major caves of Madhya Pradesh (मध्यप्रदेश की प्रमुख गुफाएँ)

मृगेन्द्रनाथ की गुफाएँ (Mrigendranath caves)

मृगेन्द्रनाथ की गुफा रायसेन जिले की बरेली तहसील के पाटनी गांव के करीब स्थित है। इस गुफा तक पहुंचना आसान नहीं है। टेढ़े मेढ़े रास्तों और चट्टानों को पार करते हुए इस गुफा तक पहुंचना होता है।

गुफा की शुरुआत में बजरंग बली की प्रतिमा है और पत्थर पर शिव चरण उकेरे गए हैं। लगभग 100 मीटर का रास्ता तय करने के बाद अनेक ऐसी चट्टानें मिलती है जिनपर जानवरों की अनेक आकृतियां उकेरी गई है।

यह गुफा इतनी संकरी है कि एक बार में एक व्यक्ति ही जा सकता है। उसे भी गुफा में सहजता से नहीं बल्कि चट्टानों से चिपक कर ऐसे चलना पड़ता है जैसे छिपकली रास्ता तय कर रही हो। गुफा के अंदर प्राकृतिक पत्थर के विभिन्न स्वरूप देखने को मिलते हैं। गुफा आगे चलकर काफी चौड़ी हो जाती है और उसके चारों ओर भूल भुलैया जैसे कई छोटे रास्ते नजर आने लगते है।

बाघ की गुफाएँ (Tiger caves)

बाघ गुफाएं, मध्य प्रदेश में धार जिले से 97 किलोमीटर दूर विन्ध्य पर्वत के दक्षिणी ढलान पर हैं। ये इंदौर और वडोदरा के बीच में बाघिनी नदी के किनारे स्थित हैं। इन गुफाओं का सम्बन्ध बौद्ध धर्म से है। यहां अनेक बौद्ध मठ और मंदिर देखे जा सकते हैं।

इन गुफाओं में चैतन्य हॉल में स्तूप हैं और रहने की कोठरी भी बनी हैं जहाँ बोद्ध भिक्षु रहा करते थे। इसीलिए इन्हें ‘बौद्ध चित्र के प्राण’ भी कहा जाता है। इनकी कुल संख्या 9 है, जिसमें पहली गुफा को ‘गृह गुफा’, दूसरी गुफा को ‘पांडव गुफा’ तीसरी को ‘हाथीखाना’ और चौथी को ‘रंगमहल’, 5 और 6 वीं गुफा को ‘सभामंडप’ एवं 7,8,9 के अवशेष मात्र बचे है। 1953 में भारत सरकार द्वारा राष्ट्रीय स्मारक रूप में घोषित किया था। अजन्ता और एलोरा गुफाओं की तर्ज पर ही बाघ गुफाएं बनी हुई हैं।

इन गुफाओं की खोज 1818 में डेन्जर फील्ड ने की थी। इसका निर्माण गुप्त शासकों वे कराया था रंगीन चित्र कार्यकारिणी के कारण ‘रंगमहल’ भी कहते हैं। माना जाता है कि दसवीं शताब्दी में बौद्ध धर्म के पतन के बाद इन गुफाओं को मनुष्य ने भुला दिया था और यहां बाघ निवास करने लगे। इसीलिए इन्हें बाघ गुफाओं के नाम से जाना जाता है। बाघ गुफा के कारण ही यहां बसे गांव को बाघ गांव और यहां से बहने वाली नदी को बाघ नदी के नाम से जाना जाता है।

बिलौवा गुफाएँ (Bilaua Caves)

बिलौवा की गुफाएँ ग्वालियर जिले में स्थित है। इन गुफाओं का निर्माण 12वीं शताब्दी में किया गया था। बिलौवा की गुफाओं में शैलकृत शैल प्रतिमाएँ है।

भीमबेटका की गुफाएँ (Bhimbetka Caves)

भीमबेटका (भीमबैठका) भारत के मध्य प्रदेश प्रान्त के रायसेन जिले में स्थित एक पुरापाषाणिक आवासीय पुरास्थल है। यह आदि-मानव द्वारा बनाये गए शैलचित्रों और शैलाश्रयों के लिए प्रसिद्ध है। इन चित्रों को पुरापाषाण काल से मध्यपाषाण काल के समय का माना जाता है। ये चित्र भारतीय उपमहाद्वीप में मानव जीवन के प्राचीनतम चिह्न हैं। यह स्थल मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल से 45 किमी दक्षिणपूर्व में स्थित है। इनकी खोज वर्ष 1957-1958 में डॉक्टर विष्णु श्रीधर वाकणकर द्वारा की गई थी।

भीमबेटका क्षेत्र को भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण, भोपाल मंडल ने अगस्त 1990 में राष्ट्रीय महत्त्व का स्थल घोषित किया। इसके बाद जुलाई 2003 में यूनेस्को ने इसे विश्व धरोहर स्थल घोषित किया।

यहाँ पर अन्य पुरावशेष भी मिले हैं जिनमें प्राचीन किले की दीवार, लघुस्तूप, पाषाण निर्मित भवन, शुंग-गुप्त कालीन अभिलेख, शंख अभिलेख और परमार कालीन मंदिर के अवशेष सम्मिलित हैं।

ऐसा माना जाता है कि यह स्थान महाभारत के चरित्र भीम से संबन्धित है एवं इसी से इसका नाम भीमबैठका (कालांतर में भीमबेटका) पड़ा। ये गुफाएँ मध्य भारत के पठार के दक्षिणी किनारे पर स्थित विन्ध्याचल की पहाड़ियों के निचले छोर पर हैं इसके दक्षिण में सतपुड़ा की पहाड़ियाँ आरम्भ हो जाती हैं।

भीमबेटका क्षेत्र में प्रवेश करते हुए शिलाओं पर लिखी कई जानकारियाँ मिलती हैं। यहाँ के शैल चित्रों के विषय मुख्यतया सामूहिक नृत्य, रेखांकित मानवाकृति, शिकार, पशु-पक्षी, युद्ध और प्राचीन मानव जीवन के दैनिक क्रियाकलापों से जुड़े हैं। चित्रों में प्रयोग किये गए खनिज रंगों में मुख्य रूप से गेरुआ, लाल और सफेद हैं और कहीं-कहीं पीला और हरा रंग भी प्रयोग हुआ है।

उदयगिरि की गुफाएँ (Udayagiri Caves)

उदयगिरि की गुफाएँ, मध्य प्रदेश के विदिशा के निकट स्थित 20 गुफाएँ हैं। ये गुफाएँ 5वीं शताब्दी (ई. पश्चात) के आरम्भिक काल की हैं और शिलाओं को काटकर बनायी गयीं हैं।

इन गुफाओं में भारत के कुछ प्राचीनतम हिन्दू मन्दिर और चित्र सुरक्षित हैं। इन गुफाओं में स्थित शिलालेखों के आधार पर यह स्पष्ट है कि ये गुफाएँ गुप्त नरेशों द्वारा निर्मित करायीं गयीं थी।

उदयगिरि की ये गुफाएँ भारत के सबसे महत्वपूर्ण पुरातात्विक स्थल हैं और भारतीय पुरातात्विक सर्वेक्षण द्वारा संरक्षित स्मारक हैं।

उदयगिरि में कुल २० गुफाएँ हैं। इनमें से कुछ गुफाएँ 4वीं-5वीं सदी से सम्बद्ध हैं। गुफा संख्या 1 तथा 20 को जैन गुफा माना जाता है। गुफा क्रमांक-5 में विष्णु के वाराह अवतार का चित्रण है, तथा गुफा क्रमांक-5 में वाराह अवतार के पास ही समुद्र देव का चित्रण है।

उदयगिरि को पहले “नीचैगिरि” के नाम से जाना जाता था। कालिदास ने भी इसे इसी नाम से संबोधित किया है। 10वीं शताब्दी में जब विदिशा, धार के परमारों के हाथ में आ गया, तो राजा भोज के पौत्र उदयादित्य ने अपने नाम से इस स्थान का नाम उदयगिरि रख दिया।

भर्तृहरि गुफाएँ (Bhartrihari Caves)

भर्तृहरि गुफाएं, गुफाओं का एक समूह है। इस जगह का नाम एक ऋषि भर्तृहरि के नाम पर पड़ा है। राजा भर्तृहरि, राजा विक्रमादित्‍य के सौतेले भाई, एक विद्वान और एक कवि थे। यह गुफाएं क्षिप्रा नदी के पास उज्जैन में स्थित है।

भर्तृहरि एक महान संस्कृत कवि थे। संस्कृत साहित्य के इतिहास में भर्तृहरि एक नीतिकार के रूप में प्रसिद्ध हैं। इनके शतकत्रय (नीतिशतक, शृंगारशतक, वैराग्यशतक) की उपदेशात्मक कहानियाँ भारतीय जनमानस को विशेष रूप से प्रभावित करती हैं।

शाही और लक्‍जरी राजवंश में जन्‍मे, राजा भर्तृहरि ने सांसारिक संपत्ति की खोज में वास्‍तविक जीवन को खोज लिया और उसके बाद उन्‍होने अपने शाही जीवन को त्‍याग दिया। इसके बाद, वह ज्ञान के मार्ग पर चल पड़े। ज्ञान और सत्‍य की खोज में वह यहां (उज्जैन) आकर ठहरे और इसीकारण इन गुफाओं को भर्तृहरि गुफाएं कहा जाता है।

इन गुफाओं में एक छोटा सा मंदिर है जो नाथ समुदाय के देवता को समर्पित है और यहां उन्‍ही की मूर्ति भी स्‍थापित है।

पाण्डव गुफाएँ (Pandava Caves)

पचमढ़ी में स्थित पांडव गुफाएं पांच छोटी पहाड़ियों का समूह हैं। ऐसा विश्वास है कि अपने निष्कासन के दौरान पांडवों ने यहाँ शरण ली थी। इन गुफाओं का आकार छोटा है।

पुरातात्विक प्रमाण यह बताते हैं कि इन गुफाओं का निर्माण गुप्तकालीन एवं बौद्ध भिक्षुओं द्वारा करवाया गया होगा, क्योंकि वे लोग इस स्थान का उपयोग शरण लेने के लिए करते थे। परंतु स्थानीय लोगों के बीच पांडवों की कथाएं अधिक प्रसिद्ध हैं। यहाँ पर ‘द्रौपदी कोठरी’ और ‘भीम कोठरी’ देखी जा सकती है।

मध्यप्रदेश की प्रमुख गुफाओं की सूची निम्नलिखित है

गुफाएँ (Caves)स्थित (Located)
बाघ की गुफाएँ (Tiger caves)धार (बाघ गांव के समीप बाघनी नदी)
बिलौवा गुफाएँ (Bilaua Caves)ग्वालियर जिले में
भीमबेटका की गुफाएँ (Bhimbetka Caves)अब्दुल्लागंज (रायसेन)
मृगेन्द्रनाथ की गुफाएँ (Mrigendranath caves)रायसेन (पाटनी गांव)
उदयगिरि की गुफाएँ (Udayagiri Caves)विदिशा
भर्तृहरि गुफाएँ (Bhartrihari Caves)उज्जैन
पाण्डव गुफाएँ (Pandava Caves)पचमढ़ी
शंकराचार्य की गुफाएँ (Shankaracharya Caves)ओंकारेश्वर (खण्डवा)
मारा की गुफाएँ (Mara Caves)सिंगरौली
आदमगढ़ की गुफाएँ (Caves of Adamgarh)होशंगाबाद
कबरा गुफाएँ (Cabra Caves)राजगढ़

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