Table of Contents
सुमित्रानन्दन पन्त (Sumitranandan Pant) जीवन – परिचय
● जन्म और पारिवारिक जीवन –
प्रारम्भ में छायावादी फिर प्रगतिवादी और अन्त में आध्यात्मवादी सुमित्रानन्दन पन्त (Sumitranandan Pant) का जन्म हिमालय की अनन्त सौन्दर्यमयी प्रकृति की गोद में बसे कूर्माचल प्रदेश (अल्मोड़ा जिला) के कौसानी नामक ग्राम में सन् 1900 ई. (संवत् 1957 वि.) में हुआ था। जन्म के कुछ समय बाद इनकी माता सरस्वती देवी का देहावसान हो गया था। मातृहीन बालक ने प्रकृति माँ की गोद में बैठकर घण्टों तक चिन्तनलीन होना सीख लिया। इससे आभ्यन्तरिक विचारशीलता का संस्कार विकसित होने लगा।
● शिक्षा –
अपने गाँव और अल्मोड़ा से शासकीय हाईस्कूल से प्रारम्भिक शिक्षा प्राप्त की और काशी से मैट्रिक परीक्षा उत्तीर्ण की। सेन्ट्रल म्योर कॉलेज में एफ. ए. की कक्षा में अध्ययनरत सुमित्रानन्दन पन्त सन् 1921 ई. गाँधी जी के प्रस्तावित असहयोग आन्दोलन में शामिल हो गए। कॉलेज पढ़ाई छूट गई। बाद में स्वाध्याय से ही अंग्रेजी, संस्कृत एवं बंगला साहित्य का गहन अध्ययन किया।
● साहित्य सेवा –
इनके बचपन का नाम गुसाई दत्त था। कविता करने की रुचि बचपन से ही थी। इनकी प्रारम्भिक कविता ‘हुक्के का धुंआ’ थी। काव्य की निरन्तर साधना से शीर्षस्थ कवियों में प्रतिष्ठित हुए। कालाकांकर नरेश के सहयोगी रहे। ‘रूपाभ’ पत्र के सम्पादक का कार्य सफलतापूर्वक किया। बाद में सन् 1950 ई. में आकाशवाणी में अधिकारी बने। अविवाहित पन्त ने सारा जीवन साहित्य साधना में ही समर्पित कर दिया।
साहित्य साधना के लिए भारत सरकार ने ‘पद्म – भूषण’ की उपाधि से अलंकृत किया। इन्हें साहित्य अकादमी और ज्ञानपीठ पुरस्कार प्राप्त हुए। पन्त जी हिन्दी की नई धारा के जागरूक कवि और कलाकार हैं। प्रकृति सुन्दरी की गोदी में जन्म लेने तथा विद्यार्थी जीवन में अंग्रेजी कवि शैली, कीट्स, वईवर्थ की स्वच्छन्द प्रवृत्तियों से अत्यधिक प्रभावित होने के कारण वे नई दिशा में अग्रसर हो गए। वे प्रकृति और जीवन की कोमलतम विविध भावनाओं के कवि हैं। प्रकृति की प्रत्येक छवि को, जीवन के प्रत्येक रूप को उन्होंने आत्म – विभोर और तन्मय होकर देखा है। उनके काव्य में दो धाराओं का समावेश हो गया है – एक में उनके कवि हृदय का स्पन्दन है, तो दूसरी में विश्व जीवन की धड़कन।
मुख्य रूप से पन्त जी दृश्य जगत के कवि हैं। पहले वे प्राकृतिक सौन्दर्य के कवि थे। बाद में, वे जीवन सौन्दर्य के कवि के रूप में बदल गए। पन्त जी विश्व में ऐसा समाज चाहते हैं जो एक – दूसरे के सुख – दुःख का सहगामी हो सके।
पन्त की पंक्तियों में झाँककर देखिए –
“जग पीड़ित रे अति दुःख से, जग पीड़ित रे अति सुख से।
मानव जग में बट जाए, दुःख – सुख से और सुख – दुःख से॥”
● रचनाएँ –
पन्त जी की रचनाएँ निम्नलिखित हैं –
(1) वाणी – प्रेम , सौन्दर्य और प्रकृति चित्रों से युक्त प्रथम रचना।
(2) पल्लव छायावादी शैली पर आधारित काव्य संग्रह।
(3) गुञ्जन सौन्दर्य की अनुभूति प्रधान गम्भीर रचना।
(4) युगान्त, (5) युगवाणी, (6) ग्राम्य – प्रगतिशील विचारधारा की मानवतावादी कविताएँ, (7) स्वर्ण किरण, (8) स्वर्ण धूलि, (9) युगपथ, (10) उत्तरा, (11) अतिमा, (12) रजत – रश्मि, (13) शिल्पी, (14) कला और बूढ़ा चाँद, (15) चिदम्बरा, (16) रश्मिबन्ध, (17) आदि उनके काव्य संग्रह हैं।
उपर्युक्त के अतिरिक्त
लोकायतन (महाकाव्य)
‘ग्रन्थि‘ (खण्डकाव्य)
ज्योत्सना, परी, रानी आदि (नाटक)
‘हाट‘ (उपन्यास)
पाँच कहानियाँ (कहानी संग्रह)
मधु ज्वाल ‘उमर खैयाम की रूबाइयों का अनुवाद, तथा ‘रूपाभ’ पत्र का सम्पादन उनकी प्रतिभा का प्रमाण है।
उपाधि एवं पुरस्कार – लोकायतन – महाकाव्य है – उ.प्र . सरकार द्वारा दस हजार रुपये से पुरस्कृत। ‘कला और बूढ़ा चाँद’ पर साहित्य अकादमी का पाँच हजार रुपये से पुरस्कृत। ‘चिदम्बरा’ पर एक लाख रुपए का पुरस्कार ज्ञानपीठ द्वारा दिया गया। ज्ञानपीठ पुरस्कार प्राप्त करने वाले हिन्दी के सबसे पहले कवि थे पन्त जी। भारत सरकार ने ‘पद्म भूषण‘ की उपाधि से अलंकृत किया। 29 सितम्बर, सन् 1977 ई. को प्रकृति का गीतकार हमारे बीच से उठ गया।