प्राचीन भारत-सिन्धु घाटी सभ्यता–
सिन्धु घाटी सभ्यता विश्व की प्राचीनतम् सभ्यताओं (मिस्र, मैसोपोटामिया, सुमेर एवं क्रीट) के समान विकसित एवं प्राचीन थी। सिन्धु घाटी के विस्तार की अवधि 2500-1800 ई.पू. थी। इसे हड़प्पासभ्यता के नाम से भी जाना जाता है, क्योंकि इसके प्रथम अवशेष हड़प्पा नामक स्थान से प्राप्त हुए थे। सबसे पहले जिन्हें 1921 ई. में रायबहादुर दयाराम साहनी ने हड़प्पा नामक स्थान से प्राप्त किये थे।
कालान्तर में इस सभ्यता के अवशेष सिन्धु नदी की घाटी से दूर गंगा-यमुना के दोआब और नर्मदा, ताप्ती के मुहानों तक प्राप्त हुए। इस सभ्यता का विस्तार आधुनिक पंजाब, सिन्ध, बलूचिस्तान, गुजरात, राजस्थान और पश्चिम उत्तर प्रदेश तक था। इस सभ्यता की महत्वपूर्ण विशेषता नगर योजना थी। नगरों में सड़कें व मकान विधिवत् बनाये गये थे। मकान पक्की ईंटों के बने होते थे और गन्दे पानी के निकास हेतु नालियों की व्यवस्था थी।
सिन्धु सभ्यता के महत्वपूर्ण स्थल–
क्र.सं. | महत्वपूर्ण स्थल | स्थिति |
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1. | हड़प्पा | जिला – मांटगोमरी, (पाकिस्तान) |
2. | चन्हूदड़ो | सिन्ध प्रान्त, (पाकिस्तान) |
3. | मोहनजोदड़ो | जिला – लरकाना, (पाकिस्तान) |
4. | सुत्कागेंडोर | बलूचिस्तान |
5. | लोथल | जिला – अहमदाबाद, (गुजरात) |
6. | कोटदीजी | सिन्ध प्रान्त, (पाकिस्तान) |
7. | रोपड़ | जिला – रोपड़ (पंजाब) |
8. | अलीमुरीद | सिन्ध प्रान्त, (पाकिस्तान) |
9. | कालीबंगा | जिला – गंगानगर, (राजस्थान) |
10. | आलमगीरपुर | जिला – मेरठ, (उत्तर प्रदेश) |
11. | बनवाली | जिला – हिसार, (हरियाणा) |
12. | रंगपुर | जिला – काठियावाड़, (गुजरात) |
इनका मुख्य व्यवसाय कृषि था। गेहूं, जौ, कपास, चावल एवं फल (खजूर, तरबूज आदि) उगाए जाते थे। ये लोग धातु निर्माण उद्योग, आभूषण निर्माण उद्योग, बर्तन निर्माण उद्योग, हथियार-औजार निर्माण उद्योग व परिवहन उद्योग से परिचित थे। यहां पर पशुपतिनाथ, महादेव, लिंग, योनि, वृक्षों व पशुओं की पूजा की जाती थी। लोग भूत-प्रेत, अन्धविश्वास व जादू-टोनों पर भी विश्वास किया करते थे। समाज व्यवसाय के आधार पर चार भागों में विभाजित था –
- विद्वान
- योद्धा
- प्रशासनिक अधिकारी एवं व्यवसायी
- श्रमजीवी
शिकार करना, जुआ खेलना, नाचना, गाना बजाना आदि लोगों के आमोद प्रमोद के साधन थे। दुर्भाग्यवश अभी तक इस सभ्यता की लिपि को पढ़ा नहीं जा सका है। इसमें चित्र और अक्षर दोनों ही ज्ञात होते हैं। यह सभ्यता करीब एक हजार साल रही। इसके अंत के विषय के बारे में इतिहास एकमत नहीं है और अलग-अलग मत दिए हैं, जिनमें आर्यों का आक्रमण, बाढ़, सामाजिक ढांचे में विखराव, भूकम्प आदि प्रमुख हैं।